Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 407
________________ हरिवंश पुराण २६१ विर्षे प्रसिद्ध भया । श्री भगवान महावीरका फूफा सो प्रभुका जन्म भया तब कुण्डलपुर प्राया। सो राजा सिद्धार्थ ने बहुत सन्मान किया ॥ राजा जितसव महा जिनधर्मी इन्द्र समान पराक्रमी ताके यगोदा नाम रानी ताके प्रयोकवती नामा पुत्री सो यश अर दया कर महा पवित्रताका अनेक राजकन्या सहित श्रीमहावीर से विवाह मंगल वांछता भया यह हर्ष देखने के मनोरथ रूप विर्षे आरूढ था सो भगवान वीतराग कहा विवाह करें जे स्वात्मानुभूति रूप मिद्धिके करन हारे तिनके स्त्रीका कहा प्रयोजन ? जब तीर्थश्वर तप कल्यागकको प्राप्त भये सब वे राजकन्या आर्यका होय गई पर भगवान स्वयंभू जब केवल कल्याणक विषे जगतके सारवे अर्थ बिहार किया तब राजा जितश्च राज तज मुनि राज भया महातप विषे प्रवर्ता ।।१०। सो तपके प्रभावकर जितशत्र के केवल ज्ञान प्रगट भया मनुष्य भवका यही फल है जो केवल पाय मुक्ति जाय ॥११।। हे रिणक यह कथा हरिवंशकी कथा तोहि संक्षेपसे कही यह कथा लोक विषे प्रसिद्ध है पर चोवीस तीर्थरघर पर बारह चक्रेश्वर अर नव बलदेव नब वासुदेव नव प्रति बासुदेव यह नियष्टि शलाकाके महा पुरुष तिनका चारित्र तोहि कहा सो यह पुरा पद्धति तोहि कल्याणके अर्थ होहुँ ।।१३।। यह परमेश्वरी कथा गौतम स्वामी के मुख अनेक राजाओं सहित राजा थेगिक सुनकर नगरमें गया वारंबार नमस्कार करता भक्ति रूप है बुद्धि जाकी सो वित वि धर्मद्रीको धारता भया । पर चतुनिकायके देव पर विद्याधर प्रभुको प्रणाम कर अपने २ स्थानक गये धर्मकथा के अनुरागी धर्महीको सार जानते भवे ॥१४॥ निर्याणकी है इच्छा जिनके पर जितशत्र केबली जगत पूज्य प्राय क्षेत्र विषे विहार कर प्रघातिया कर्म हू क्षपाय अक्षम धामको प्राप्त भये अनंत सुखका है प्रभाव जहां जाके अर्थ यती यतन करे हैं सो पद पाया ॥१५॥ भर बीरजिनेन्द्र है भव्य जीवनके समूहको संबोध कर पावापुरीके मनोहर नामा उद्यानते कार्तिक वदी भमा बस प्रभात समय स्वाति नक्षत्र विषे योगनका निरोध कर अघातिया कम हूँ खपाये जरो घातिया कर्मनका पात किया था तसे अधातियान हु का घात कर बन्ध त रहित जो अपवर्ग स्थानक सिद्धक्षेत्र तहां सिधारे निरन्तर है अनन्त सुखका संबंध जहां ।।१७। वे जिनेश्वर शकर मुगत सदा शिव परम विषा शुद्ध बुद्ध महेश्वर पंच कल्याएकके नायक चतुनिकायके देवन के देव निर्धारण प्राप्त भये तब इन्द्रादिक देवोंने निर्वाण कल्याएक किया प्रभुके माया मई शारीर की पूजा कर दाह क्रिया करी ।। १ ।। प्रभु परम घाम पधारे ता दिन चतुर्थ काल के वर्ष तीन और मारा साडा प्राट बाकी हुते । दीपोत्सव के दिन जिनवर जगत के शिखर पधारे तिस दिन देवन दीपन के समूह कर वह पुरी प्रकाश रूप करी प्राकाश और धरती पित

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