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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तू अनघेशनाथ अतिछात्रो,
अतिरिक्तो छाननितें सोय । तू अलपेशमा अति गात्रो,
__ अत्यंतो अत्यर्थ न दोय ॥४०॥
तू अतिनाथ अतित जु पात्रो,
अति र हितू अत्यंत जु भात । अतिभृता तेरै निस्वामी,
अतिचेतन तू अमित सुतात ।। अति जुनंत भेदधर तू ही,
आप अभेदो है अनिपात । सू सामान्य विशेषातम है,
एकानेक जु द अजात ।।४०३।।
जो अतिक्रांति विश्रांति दयाला,
अरिहंता अतिशांत मुनीश । सुरनर मुनिबर खग तिरको मन,
हरे न चौरो अति जगदीश ।। सांच झूठ जे जगत प्रपंचा,
जाने सव अररहित जुरीस । जीव रसिक जो नासक कर्मा,
निरग्रंथो अति कमलाधोश 11४०४।।
इह अदभूत गति देखहु ता,
सो अध्यात्म धारसु सार । अध्यातमि को तारक देव,
असुधारिनि को है प्रतिपार ।।