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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इत्यादि रज- नत्र पुग्ली, को त्रलोय जीव नहीं दुस्खी । ऐसो नग्र उजेणी धाम, प्रजापाल राय को नाम ॥२४॥ नारी मौभागसुन्दर जान, कन्या दोय भई गुणखान । स्वरसुन्दर जेठी को नाम, मेणासुन्दरी मुगा की धाम ।।२।। रूप जेसो सुर कन्या एव, साहस बुधी धर्म नित सेव । दोऊ सुता बु... 'सुखकार, तब भगने । मेली सार ॥२६॥ जोसी सिवसम इक दुज जानि, वाल्या भरो बड़ी इस थान । स्व प्रतिवेद भणी बहु सही, मिथ्या नागम पढि मद भई ।।२७।। मेरणासुदरि होटी सुता, महा बडभागीर गुगा जुता । येक दिन जिन बंदन कू गई, त्रिभवन तिलक चताले सई ।।२८।। तहा जिन पूजे हरष वाय, फिरि बंदे जिन धर्म मुनिराय । नय निज सीस ठई मुनि पास, धर्म सुण्यो सब सुख को रास ।। २६॥ लये अणूबत कन्या सही, फिरि मुनि ते इम वीनती ठई । भौं प्रभु धर्म जिनेस्वर सार, मोहि पढाबो सुख करतार ।।३०।। मुनि दिग कन्या पढे सुभाष, जिन मन रहसि जतीवत वाय । प्रथमानु आदिक चव जोग, कन्या भरणी महा सुख भोग ।।३१।। धर्म अधर्म रूप लखि लियो, जान्यो तत्व भेद जिन चयो। देव धर्म गुरु दिढता लाय, सम्यक् जुत अणुव्रत धराय ।।३२।। या जग संग उच्च ते सही, क्या क्या गुरण उपजे नहीं कही । नीच संगतें दूषण कोय, कोन कोन उपजे नहीं सोय ।।३३।। या विधि कन्या दोऊ सार, नाना कला पढी सुखकार । इक दिन बड़ी सुता कू सही, वंछित वर जांचो नृप कही ।।३४।। कन्या तब भाखो सुनि तात, अहिछत नग्न राय सुभ गात । वरदामन नाम है सही तासू व्याह करू' इम कही ।।३।। तब राजा बहु ठानि उछाह, कियो बडी कन्या को ब्याह । मेणासुदरी इक दिन सही, पूजे जिन गंदोदक लही ।।३६।।