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पप-पुराण-भाषा
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सो मंत्रियों ने मंत्र करि खदूषण के मरणकी शंकाते युद्ध रोक दिया, रात खरदूषण को जुड़ावना पर वरुण को जीतना सो तुम अवश्य शीघ्र आइयो, ढील मत करियो । तुम सरिखे पुरुष मतंब्यमें न चूके, अब सब विचार तिहारे प्रायवे पर है। यद्यपि मूर्म तंज पुज है तथापि अरुण सरिया सारथी चाहिए । तब राजा प्रह्लाद पत्रके ममाचार जानि मत्रियोंसों मंत्र कर रादा के समीप चननेकों उद्यमी भगा । तब प्रल्लाद को चलता सुनकर पवन जयकुमार ने हाथ जोडि गोड नितं धरती स्पर्श नमस्कार विनती करी। हे नाथ ! मुफ पुरके होते मते तुमको गमनयुक्त नाहीं, पिता जो पुत्र को पालं है सो पुत्रका यही धर्म है कि पिताकी मेवा कर तो जानिए पुत्र भया ही नाहीं । तःत पाए कूच न कर, माहि प्राज्ञा करै । तब पिता कहते भये, हे पुत्र ! तुम चुमार हा, अब तक तुमने कोई युद्ध देधा नाही, त.ते तुम यहां रहो, मैं जाऊगा । तव पवन जयकुमार कनकाचल के तट समान जो वक्षस्थल ताहि ऊंचाकर तेज के धरणहारे वचन कहता भया है तात ! मरी शक्ति का लक्षण तुमने देख्या नाही, जगत के दा हवे में अग्नि के स्फुलिने का क्या वीर्य परखना । तुम्हारी प्राज्ञारूप प्राशिषाकर पवित्र भया है मस्तक मेग, ऐसा जो मैं इन्द्रको भी जीननेकों समर्थ है, यामें सदेह नाहीं । ऐमा कहकर गिताकों नमस्कार कर महा हपं संयुक्त उटकरि स्नान भोजनादि शरीरकी क्रिया करी अर आदर सहित जे कुल में वृक्ष हैं निम्होंने प्रसोस दीना । पाव सहित अग्हंत सिद्ध को नमस्कारपरि परम कांति को धरता संता महा मंगलरूप पितासों विदा होवेकों प्राया सो पिताने पर माताने मंगल के भयत प्रामू न का, आशीर्वाद दिया । हे पुट ! तेरी विजय होव, छाती सों लगाय मस्तक चुम्या ।
पधनंजय कुमार श्री भगवान का ध्यान घर माता पिता को प्रगाम करि जे परिवार के लोग पायनि प तिनको बहुत यं बंधाम सबसों अति स्नेह कर विदा भए । पहले अपना दाहिना पात्र आम धर चले । फुरफ है दाहिनी मुजा जिनकी पर पूर्ण कल ग जिनके मुख पर लान पल्लव तिनपर प्रथम ही इष्टि पड़ी । अर थंभसों लगी हुई द्वार खड़ी जो प्रजना सुन्दरी ग्रांसुनिवरि भोज रहे हैं नेत्र जाके, तांबूलादिरहित घुसरे होय रहे है अधर झाके, मानों घभाविष उकेरी पुतली ही है। कुमार की दृष्टि सुन्दरी पर पड़ी सो क्षणमा अविष दृष्टि संकोच कोकारि बोले । हे दुरीक्षणे कहिए दुःखकारी है दर्गन जाका, या स्थानकत जावी, तेरी दृष्टि उल्कापात समान है, सो मैं महार न सकू 1 ग्रहो बड़े कूल की पुत्री युलवंती ! तिनमें वह ढीठपणा कि मने किए भी निलंज कमी रहे। पति के अतिक्रूर बचन सुने तो भी याहि अति प्रिय लाग जैस