Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 384
________________ २६५ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व बात प्रसिद्ध होमगी तो हमारे निर्मल कुल विर्षे कलंक आवेगा । जे बड़े कुलकी बालिका निर्मल हैं. अर महा विनययंती उत्तम चेष्टाकी धरणहारी हैं ते पीहर सासुरै सर्वत्र स्तुति करने योग्य हैं । जे पुण्याधिकारी बड़े पुरुष जन्म ही तें निर्मल शील पाले हैं, ब्रह्मचर्य को धारण कर हैं पर सर्व दोष का मूल जो स्त्री तिनकों अंगीकर नाही करे हैं ते धन्य हैं। ब्रह्मचर्य समान और कोई व्रत नाहीं अर स्त्री के अंगीकार में यह सफल नाहीं होय है । जो पूत बेटा बेरी होय पर उनके अवगुण पृथ्वी विष प्रसिद्ध होंय तो पिताका धरती में गड़ जाना होय है 1 सम्म ही कुल को लज्जा उपज है. मेरा मन प्राज अति दुःखित होय रहा है, मैं यह बात पूर्व अनेक बार सुनी हुती जो यह भरतार के अप्रिय है पर वह याहोखत नाही वंह कार गर्म की उत्पत्ति कैसे भई. तातै पह निश्चय सेती सदोष है। जो कोई याहि मेरे राज्य में राखेगा सो मेरा शत्रु है । ऐसे वचन कहकर राजा ने कोरकर जैसे कोई जान नाहीं या भांति याकों द्वारले निकाल दीनी। सखी सहित दुःखकी भरी अंजना राजाके निज वर्ग के जहाँ जहाँ मात्रय के प्रथि गई, सो प्राने न दीनी, कपाट दिए । जहाँ बाप ही क्रोधायमान होय निराकरण कर, तहां कुटुम्ब की कमी पाशा, ने तो सब राजा के अधीन हैं। ऐसा निश्चयकर सवतै उदास हो सखीसों कहती भई। आंसूबों के समूहकर भीज गया है अंग जाका, हे प्रिये ! यहा सर्व पाषाण चित्त है, यहां कैसा बास ? तात बन में चालें, अपमानते तो मरना भला । ऐसा कहकर सखी सदित बन को चाली, मानों मृगराजतं भयभीत मृगी ही है । शीत 'उष्ण पर बात के खेदकार पीडित बन में बैठि महा रुदन करती भई । हाय हाय ! मैं मंदागिनी दुःखदाई जो पूर्वोपार्जित कम ताकरि महाकष्टको प्राप्त भई । कौनके शरण जाऊ ? कौन मेरी रक्षा कर। मैं दुर्भाग्न सागरके मध्य कौन कर्मत पड़ी । नाथ ! मेरा अशुभ कर्मका प्रेर्या कहांत आया ? काहेको गर्भ रह्या, मेरा दोनों ही ठौर निरादर भया । माता ने भी मेरी रक्षा न करी, सो यह कहा कर । अपने घनी की प्राज्ञाकारिणी पतियतानिका यही धर्म है। पर नाथ मेरा यह वचन कह गया हुता कि तेरे गर्भकी वृद्धित पहिले ही मैं पाऊँगा सो हाय वह बचन क्यों भूले ? पर सासू ने बिना परखे मेय त्याग क्यों किया? जिनके शोल में संदेह होय तिनके परखने के अनेक उपाय हैं पर पिताकों में बालअवस्था विष प्रति लाड़ली हुती, निरंतर गोदमें सिलावते हुते सो बिना परखे मेरा निरादर किया, इनको ऐसी बुद्धि क्यों उपजी ? अर माताने मुझे गर्भमें धारी, प्रतिपाल किया, अब एक बात भी मुखते ने निकाली कि इसके गुण दोष का निश्चय कर लेवें।

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