Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 379
________________ पम-पुराण-भाषा २१३ विनती करी-हे कल्याणरूपिणि । हे पतिव्रते! हमारा अपराध क्षमा करो, अब सब अशुभ कर्म मए । तिहारे प्रेमरू गुणा का प्रेर्गा तेरा प्रारानाथ आया । तेरेसे प्रति प्रसन्न भया तिनकी प्रसन्नताकरि कहा कहा मानंद न होय, जैसे चंद्रमाके योगवारि रात्रिकी अति मनोज्ञता होय । __तब अंजनासुन्दरी क्षण एक नीची होय रही पर वसंतमाला प्रहस्तसों कही-हे भद्र ! मेघ बरस जव ही भला, तात प्राणनाथ इनके महल पधारे मो इनका बड़ा भाग्य पर हमारा पुण्यरूप वृक्ष फल्या । यह वात होय रही हुती ताही समय पानंदके अश्रुपातकरि व्याप्त होए गग हैं नेष जिनके सो कुमार पधारे ही, मानों करुणारुप सम्बी ही प्रोलमकों प्रिया के दिग ले माई। तब भयभीत हिरणी के नेत्र-समान सुन्दर हैं नेत्र जाके ऐसी प्रिया पति को देव सन्मुख जाय हाथ जोडि सीस निवास नायनि पड़ी। तब प्राय वल्लभने अपने करते सीस उठाय खड़ी करी । अमृत समान वचन कहे कि हे देवी ! क्लेश का मकल खेद निवृत्त हो । सुन्दरी हाथ जोडि पतिके निकट खड़ी हुती । पति ने अपने करते कर पकड़करि सेजवर बियाई, तब नमस्कार कर प्रहस्त तो बाहिर गए पर वसंतमाला हू अपने स्यान जाय बैठी । पवनंजय कुमारने अपने प्रजानत लज्जावान होय सुदरीसों वारंवार कुशल पूछी पर कही हे प्रिये ! मैंने अशुभ कर्म के उदयत जो तिहारा वृथा निरादर किया सो क्षमा करो । तब सुन्दरी नीचा मुखरि मंद मंद वचन कहली भई, हे नाथ ! प्रापने पगभव कुछ न किया, कर्मका ऐसा ही उदय हुआ । ग्रज अापने कृपा करी, अति स्नेह जताया सो मेरे सर्व मनोरथ सिद्ध भए । श्रापके ध्यानकर सयुक्त मेरा हृदय सो श्राप सदा हृदय ही विविराजते, आपका अनादरहू प्रादर समान भास्या । या भांति अंजना सुन्दरी ने कह्मा त पवनंजयकुमार हाथ जोड़ कहते भए कि हे प्राररिये ! मैं वृथा अपराध किया । पराए दोपते तुमको दोष दिया सो तुम सब अाराध हमारा विस्मरण करो। मैं अपना अपराध क्षमावने निमित्त तिहारे पायनि परू है, तुम हम सों अति प्रसन्न होवो, ऐसा कहकर पवन नयकुमारने अधिक स्नेह बनाया तब अंजना सुन्दरी पति का ऐसा स्नेह देखकर बहुत प्रसन्न भई । घर पति को प्रियवचन कहती भई, हं नाथ ! मै अति प्रसन्न भई, हम तिहारे चरणारविदको रज है. हमारा इतना विनय तुमकों उमित नाहीं ऐसा कहकर सुग्वयों सेज पर विराजमान विए. प्राणनाथ की कृपाकरि प्रिया का मन अति प्रमन्न भया अर. शरीर अतिकांतिको घरता भया, दोनों परस्पर प्रतिस्नेहके भरे एक चित्त भा। सुखरूप जागृति रहे, निद्रा न लीनी । पिछले पहर अल्प निद्रा पाई, प्रभात का

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