Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 360
________________ २४४ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व अथ श्रीपाल चरित्र भाषा लिख्यते दोहा तीर्थङ्कर चोबीस जिन, धर्म राज के ईस । गुरण अनन्त मंडित प्रभु, नमत सक्र सत सीस ।।१।। सकल विधन हर मर्म कर, सिद्धचक्र अतिसार । ताकू बदु भाव सू, छोडि जगत भ्रमजाल ॥२।। . चौपई बंदु त्रिविध गुरु गुरण खान, राग रहित मानी अधिकान । सप्तम गुण ठाणे मुनि गये, चढ़ि के खिपक श्रेणी सिध भये ।।३।। श्री जिन कमल थकी धुनि त्रिरी, गणधर देव प्रगट विसतरी। तीन जगत कू अति सुखकार, सारद बंदु भवधि तार ।।४।। श्री जिन शुत गुफ नमि पाय, सिद्धचक्र नमिहूं हित लाय । जा परसाद श्रीपाल नरेस, कहूं चरित्र महासुभ भेष ।।५।। जंब भरत प्रारज उर पान, मगध देस स्वरथल सम जान । राजग्रही तामें पुर सही, श्रेणीक भूप सम्यकधर कही ।।६।। नारि चेलणा ता घर सती, सम्यक आदि गुणांकर जुती । ताके अभयकुवर सुत नाम, सो अतिरूप बुद्धि को धाम ।।७।। ऐसे राज करे नरराय, इक दिन सभा ठये सुख पाय । एते पायो इक वनपाल, करी वीनती अति गुणमाल |||| भो नृप भाग तिहारे सही, वर्धमान जिन पाये कही । समोसरण विपुलाचल पाय, तिप्ले हरि मुर जं जं लाय ||६|| इम सुरिग राय महासुख लेय, सिंघपीठ ने जनरयो जाय । मात पंड ता पोड़ी जाय, अपनो सीस नमायो राय ।।१०

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