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प्रध्यात्म बारहखड़ी
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अठदश जु हजारा शील प्रकारा,
अनतीचारा बर प्यारा ।।४१७।। है अति तिक्षारी प्रतिक्षिम धारी,
__ अलख जगारी अतिभारी । है क्षण क्षण धारा आप सम्हाग,
जान अपारा घर प्याग। है अतिमद मारा अमद सुधारा,
अतिसै बारा जगतारा । है अतिसंबनी नाथ अवेगी,
आपुन एगी अतिभारा ॥४१८॥ है गति प्रति धारा रहित जु भारा,
अति निज लारा परहारा । है अति जस भारा अति गति प्यारा,
कृपरण विडारा अगभारा 1 है अकृपरण धाग त्याग सुधारा,
__शक्ति पारा तप धारा ।।४१६ ।। है अतितप वारा अतप पसारा,
अतितप कारा अरणगारा ॥ है तप ज्वर हारा तप जप प्यारा,
अति तप चारा अतिप्यारा । है अतिनप चंडा अतप सुदंडा,
शक्ति अखंडा अति धारा ।। है नहि असमाधा साधु समाधा,
नित्य अबाधा हर प्यारा ।।४२०।। है त्याग अखंडा ता जु प्रचंडा,
आप प्रचंडा व्रतकारा ।