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सामयि दौलए कामालीन इनिज एनिम्न
सर लागि निसान भाई, ततपिण पाछौ ही प्राई । जा ही मारग करि जावै, ताही मारग फुनि प्रावै ॥५३।। इह हाथ तनी जु सफाई, सर अति हि वेग देजाई।। लखि फरसि करै नहि छेदा, है वाहन ही मैं भेदा ॥५४।। इह होय बल्लभा ताकी, सर श्रुत मैं अति मति जाकी। है वाला प्रति हि सुलषणा, द्वै;कुलको कीरति रखरणा ॥५५।। या विधि को सुनि प्रादेसा, प्राये सावंत बिसेसा । धरि हेमामा को आसा, लागे करने अभ्यासा ॥५६।। नोबंधर हूँ व्हां प्राये, लखि रूप सबनि सुख पाये । जब वोले धनुष धरैया, तुम हूं कछु जानौं भैया ।।५७।। सुनि कहत भये सुकुमारा, हम हूं कछु इक इह धारा। तव कह्यो सवनि सरवाही, जो तुमरै चित्त उमाही ।।५।। वेधी निसांनी बीरा, उर संक न अानों धीरा । तब धनुष चढ़ाय चलायो, सर कंवर सबंनि दरसायो ॥५६॥ सो लागि निसान भाई, ततषिरण पाछौ ही पाई । तव तहां हुते नृप लोका, तिन सब बत्तांत विलोका ।।६।। ते दौरि गये नृप पासे, हरपित व्है सवद प्रकासे । सुनि करि नृा वहु सुख पायो, तिनको दारिद्र नसायो ॥६१।। निज पुत्री जीवघर कौं, परणाई गुण ततपर कौं। प्रति उछव कीयो राजा, भेले करि सर्व समाजा ।।६२।। राजा के पुत्र सपुत्ता, सब ही सज्जन गुण जुत्ता। है बड़े कंबर 'गुगमित्रा', दुजे 'बहुमित्र' विचित्रा ।।६।। तीजे को नाम 'सुमित्रा', चौथे 'धनमित्र' पवित्रा । इत्यादि अनेक कुमारा, 'जीपंधर' सौं हित धाग ।।६४।।