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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तू हि अनर्थी अर्थ न एका,
तू हि ज अर्थी अर्थ अनेका । जड़ रूपी अर्थनि तें न्यारा,
चेतन अर्थ तु ही जग प्यारा ।।१२।। सकल अर्थ ए जग के झूठे,
तेरै अथियती जगरूटे । अदभुत देव तुम्हारी प्रभुता,
तुम अधियोगी भरित सुविभुता ।। तू जु ग्रनस्वर रूप जिनंदा,
तू अजर्य अजीरण इदा । तू जु अनंत दीप्ति भगवंता,
तू जु अग्नरणी श्री अरहता ।।१३।। अर्हन तू अरूजा अचल स्थिति,
तू प्रक्षोभ विदारक भवथिति । अच्युत भू पामोहु उधारी,
दीनानाथ जु विरद उजारों । असंभूषनु है नाम जु तेरा,
मेरा हू करि देव निवेरा । तू अरिणष्ट अति सूक्षम विमला,
तू अति निर्मल चिदघन अमला ।।१४॥ अनुभव नाथ अधिक तू प्यारा,
तु अशेष कलमष ते न्यारा । मोकौं दै निज अनुभव स्वामी,
निज अनुभूति निवास स्वामी ।।१५।।
१ १३वां तथा १४वां छन्द चार पंक्तियों का है ।