________________
अध्यात्म बारहखड़ी
२२७
अखिल ब्रत उपदेशक गुरो, अणुव्रत उपदेशकहू धुरो। अखिल भूति दशिक भगवान, निखिल भूति त्यागिक धनवान ॥ ३७३।। प्रतुल भाव फरसी मुनि भेस, अचल भाव दरसी जगतेश । अमल भाव सरसीरुह सूर, सदा जु अविचल भाव सुपूर ।। ३७४।। अटल सु देबो अमल जु काय, अकल स्त्रज्योती अतुल जु राय । अज स्वरूपी विमल प्रभाव, अकर प्रकारक अकरा राव ।। ३७५।। अकरम और नसंपर दान, परदर विनु कौले सनमान । तू निज अपादांन जगदीस, अधिकरणो भगवंत अधीश ।१३७६।। पर षट्कारक ती मैं नाहि, निज घटकारक तेरे माहि । तू कर्त्ता कम्र्मा निज क्रिया, संप्रदान न है विनु त्रिया । ३.७७।। तू निज शक्ति अपादानो जु, तु आधारो अधिकरणो ज । अकरदाय तू अपर जु नाथ, अमलनाथ तू श्री जगनाथ ।। ३७८।। अमर छाय तू नहि मुरझाय, अमित छाय तू है जु अछाय । अमर ज्येय तू अमित प्रभाव, असमकाय तू रहित विभाव ।।३।। अतुल देव देवनि के देव, तेरी तुलना कोई न देव । अखिल भाय तू अनत जु नाथ, जगत राय तू मुनिगमा साथ 11३८०।। अखिल मात तू अखिल जुयात, अखिल तात जू अरिवल जुपात । असम धीर तू अखिल जु गात, तु जु अरूपी देव अजात ।। ३८१।।
छंद त्रोटक तू ही जु अनुद्धत देव अरं,
तू हि जु अनुज्झित भावचिरं । तू ही अनया सो ईश परं,
तू ही अद्वितीयो धीरधुरं ।। ३८२११ तू ही सु अनाकाशो जु वरं,
तू ही जु अवैर करो विचर ।