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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अभ्यंतर तपों का वर्णनतू प्रायश्चित तप दायक है,
तू जु जिनिदा मुनिनायक है । अविनय रूप जु धर्म म तेरा,
विनयप्रकासी तू जु घणेरा ।।२।। तू अबिनय सुनि कंदक ईशा,
विनयमूल जसु धर्म अघीशा । तेरो बिनय जु सबको करई,
वे नयभासक तू भवहरई ८३।। अतिथिनि की प्रादेशक तू ही,
अतिथिनि को पति एक प्रभू ही । तू जु अवैया बत्त करेवा,
अबरनि की इह तप जु कहेवा ११५४।। अतुलित संयमभर अतिरंगी,
अनघ अचंभी अकलितरंगी । अति थुति योज्ञ जु जे मुनिराया,
बहजु अपूजक तिन करि ध्याया ।।८।। अरति विहंडी रतिपति दंडी,
अवगुरण छडी अविनय खंडी । अति स्वाध्यायी जे मुनिराजा,
तिन करि ध्येय सदा जिन राजा ।।६।। अति पूरगा वह पाप जिनंदा,
अति श्रुतधारक प्रति श्रुत इद्रा । अति श्रुतपूरमा श्रुति जु उलंघा,
केवल रूपी देव प्रलंघा ||७||