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________________ १७८ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व अभ्यंतर तपों का वर्णनतू प्रायश्चित तप दायक है, तू जु जिनिदा मुनिनायक है । अविनय रूप जु धर्म म तेरा, विनयप्रकासी तू जु घणेरा ।।२।। तू अबिनय सुनि कंदक ईशा, विनयमूल जसु धर्म अघीशा । तेरो बिनय जु सबको करई, वे नयभासक तू भवहरई ८३।। अतिथिनि की प्रादेशक तू ही, अतिथिनि को पति एक प्रभू ही । तू जु अवैया बत्त करेवा, अबरनि की इह तप जु कहेवा ११५४।। अतुलित संयमभर अतिरंगी, अनघ अचंभी अकलितरंगी । अति थुति योज्ञ जु जे मुनिराया, बहजु अपूजक तिन करि ध्याया ।।८।। अरति विहंडी रतिपति दंडी, अवगुरण छडी अविनय खंडी । अति स्वाध्यायी जे मुनिराजा, तिन करि ध्येय सदा जिन राजा ।।६।। अति पूरगा वह पाप जिनंदा, अति श्रुतधारक प्रति श्रुत इद्रा । अति श्रुतपूरमा श्रुति जु उलंघा, केवल रूपी देव प्रलंघा ||७||
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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