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________________ श्रव्यात्म बारहखड़ी अति व्युतसर्ग उदेश कराई, अतिशय ज्यांनी अतिशय ज्ञानी, प्रतित्यागी अध्ययनो ध्यानो इक तेरी, अत्या किचन आप अपवर्गा अति व्युतसरगी मूल गुसांई । सर्वसमूहा अनुपम शुक्ल प्रपूरण ध्यांनी ॥८८॥ अकिचन ध्यान रूप तु पति सब केरी । प्रतिभागी देवा, अति त्यागोत्तम आप करेबर 11८६॥ मूलविभू है, धर्मराज तू एक सर्वसु जायें, इह अदभूत गति देख कु ता ||६|| प्रभू है कहिये जो मुक्ती, तू मुक्तीश देहु मुझ भक्ती । सर्वमई तू. सर्व रिद्धिधर कर्म्मजयी जू ॥ ६१ ॥ अतिहि सपूला है जु निरंजन, सिद्धि वृद्धि भरवह जु यक्चिन । ब्रह्मचर्य तं लभ्य जु सोई, ब्रह्ममई मूरति जु सुहोई ॥६२॥ अतनु विदार जु आपकारा, काम जु दाइक काम प्रहारा । तू जु अध्यातम सार अनादी, १७ अध्यातम देव कई अवादी ।। ६३ ।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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