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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अति भव चूरण अति जगनाथा,
मयराजिती अजित जितहाथा । तू जु अध्यातम मूल प्रसिद्धा,
अविरुध अनिरुध अनुभब मिद्धा ।।१४।। अखिल मुनायक देव अनाथा,
अखिल सुदायक आप असाथा । अखिल सुज्ञायक अाप प्रलेखा,
अखिल सुध्यापक आप अभेषा ।।५।। अखिल सुकारक कारक नाही,
अखिल सुधारक अखिल जु पाही । अखिल सुतारक अखिलाचारा,
असुचि विडारा अतिगति भारा ।। ६.६।। अनघ अधारा अतनु प्रहारा,
अति जगसारा भुबन उजारा । अकलक लो इक नाथ अभू है,
अवधि जु कंद अनंद प्रभू है ।।१७।। अनत अपार करम गण हरिया,
अखिलप्रकाम अतुल गुरंग भरिया। तु जु अशक्य विवर्णन सांई,
शक्ति नाहि को वर्ण कराई ।।८।। अलख निरूपक एक तुही जो,
तू जु अवाच्य अनिर्णय ही जो । तू जु अकथ्य पमपण सांई,
अलभ सुमहिमा जगत गुसांई ।।१६।।