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________________ १६६ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व तू हि अनर्थी अर्थ न एका, तू हि ज अर्थी अर्थ अनेका । जड़ रूपी अर्थनि तें न्यारा, चेतन अर्थ तु ही जग प्यारा ।।१२।। सकल अर्थ ए जग के झूठे, तेरै अथियती जगरूटे । अदभुत देव तुम्हारी प्रभुता, तुम अधियोगी भरित सुविभुता ।। तू जु ग्रनस्वर रूप जिनंदा, तू अजर्य अजीरण इदा । तू जु अनंत दीप्ति भगवंता, तू जु अग्नरणी श्री अरहता ।।१३।। अर्हन तू अरूजा अचल स्थिति, तू प्रक्षोभ विदारक भवथिति । अच्युत भू पामोहु उधारी, दीनानाथ जु विरद उजारों । असंभूषनु है नाम जु तेरा, मेरा हू करि देव निवेरा । तू अरिणष्ट अति सूक्षम विमला, तू अति निर्मल चिदघन अमला ।।१४॥ अनुभव नाथ अधिक तू प्यारा, तु अशेष कलमष ते न्यारा । मोकौं दै निज अनुभव स्वामी, निज अनुभूति निवास स्वामी ।।१५।। १ १३वां तथा १४वां छन्द चार पंक्तियों का है ।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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