SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म बारहखड़ी प्रतिसंगी तू है जु असंगा, यतिसंगी तू है जु अरंगा । रंगनाथ तू है अती रंगी, तू अमुरतातम लोकनाथ तू कथक त्रिभंगी ।। १६ ।। तू अधर्मेधक प्रगति स्वरूपा, तु अति धर्मी त्रिभुवन भूषा 1 प्रति ज्ञानी, तू जु अनंत अति गतिमानी ।। १७ ।। अमृतोदभव प्रमृत प्रतम, तू तू अशोक घनशोक अशोक ध्वज अति जगदातम । वितीता. शोक संताप हरी मम जीता ॥ तू अगष्य गणतो तुझ नाही, अभिनंदन तू श्रचित्य वैभव समांही ॥ १८ ॥ अभिनंदनक देवा. तू जु अपरमेयातम भेवा । तू सु अरिजय फुनि जु अभीष्टा, तू जु असंस्कृत सच जग द्रष्टा ।। १६ ।। तू अप्राकृत अवधि जु वासी, मेरी काटि देव जम पासी । तू जु अनाश्वा अशन वितीता, तू जु अनत्य अत्य जीता ||२०|| तू जु अव्ययो नाश न तेरा, व्यय प्रत्यय नाम जु मरगेरा । त अधिकधि गुरु जु मुनीशा, तू न प्रघातम देव श्रीशा ।। २१ ।। १ १८जां छन्द तीन पंक्तियों का है । १६७
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy