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________________ १६८ महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व अक्षय तू व अनर ग्राहक, तू जु अगम्य अध्यातम गम्या. तू मोत्र शुभ वाच जु स्वामी, तू तू अविशेष प्रवितर्क प्रवाहक । मोघ जु नाम कहै सु वृथा को, अमोघ अमोष श्रक्षप्तो तू परम ज् रम्या ||२२|| तू ज् मोघन तू जु कदापि प्रकामी तू कबहूं न वृथा वितथा कौ ।। २३ ।। शाशन जगनाथा, तू अमोघ भाषक जिननाथा । प्रज्ञादायक है, तू जू जिनंदा सब लायक है ||२४|| अतींद्रिक उपमाराया, तू अधिपति पर अधिश्रया । तू अचित्य चिंतक जगदीशा, तेरी आज्ञा सबकं सीसा ||२५|| अधिदैवत तू अप्रतिघाता, प्रतिध प्रति जगत विख्याता । तू अमुग्ध प्रति मुग्ध जु लोका, तेरी सेव न जांनहि वोका ।। २६ ।। श्रमित सुज्योति श्री भगवंता, तू जू अमोमुह ग्रोज अनंता । श्रप्रतिष्टा, तेरी सर्वग ख्यात प्रतिष्टा ||२७| तू जु अधिष्टानं
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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