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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अक्षय तू व अनर ग्राहक,
तू जु अगम्य अध्यातम गम्या.
तू मोत्र शुभ वाच जु स्वामी,
तू
तू
अविशेष प्रवितर्क प्रवाहक ।
मोघ जु नाम कहै सु वृथा को,
अमोघ
अमोष
श्रक्षप्तो तू परम ज् रम्या ||२२||
तू ज्
मोघन तू जु कदापि प्रकामी
तू कबहूं न वृथा वितथा कौ ।। २३ ।।
शाशन
जगनाथा,
तू अमोघ भाषक जिननाथा ।
प्रज्ञादायक है,
तू जू जिनंदा सब लायक है ||२४||
अतींद्रिक
उपमाराया,
तू अधिपति पर अधिश्रया ।
तू अचित्य चिंतक जगदीशा,
तेरी आज्ञा सबकं सीसा ||२५||
अधिदैवत तू अप्रतिघाता,
प्रतिध प्रति जगत विख्याता ।
तू अमुग्ध प्रति मुग्ध जु लोका,
तेरी सेव न जांनहि वोका ।। २६ ।।
श्रमित सुज्योति श्री भगवंता,
तू जू अमोमुह ग्रोज अनंता । श्रप्रतिष्टा,
तेरी सर्वग ख्यात प्रतिष्टा ||२७|
तू जु अधिष्टानं