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________________ अनत दर्शन अन्जु ला तेरी समता अध्यात्म बारहखड़ी अनत सुभोगुपभोग महाभा । तू ही सांमी, तो सौ और न अंतरजामी ||६|| अजड अतिंद्रिय ज्ञान अनंता, तू जु विकल्प प्रवाह नंतर 1 संकल्पा पर सकल विकल्पा, तू जु अतेंद्री मेरे मेटि जु देव प्रकल्पा ||७|| अकषाई तूं परम पुनीता, तू जु अलेसी देव प्रतीता 1 सुख जु प्रतिंद्रिय देहु जु मोकौं, घोकौं द्रव्य भाव करि तोकों ॥८॥ अमलातम तू विमल रूपी, अनहारी तू तृप्त स्वरूपी । देव प्रजोगी, तू जु प्रवेदी वेदक लोगी ॥६॥ अजरातम तू अजरण सांईं, तू जु श्रमृत्यु प्रकाल गुसाई । शेषा, तू जु असेष वित्तीत तू अचलातम जन्मन भेषा ॥ १० ॥ तू जु अचिंत्यातम प्रति धामी, चितऊ कैसें तो को स्वामी । अलं अलं पुरण प्रत्यर्थी, तेरे नांही एक अनर्था ।।११।। १६५
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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