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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सोरठा
अकाराक्षर वर्णनअक्क कहिये श्रुति माहि,
हरिहर की इह नाम है । तो बिनु, अवर सुनाहि,
हरिहर जिनवर देव तू ॥१॥ छंद बेसरी
अणोरणीया महतो महिता,
तू अद्भुत प्रातम गुण सहिता । तू मानन तिनदेव अभीता,
भव संतान अनंत विजीता ॥२॥ प्रर्द्ध मात्र तेरै नहि शत्रू,
अर्द्ध जु नारीश्वर जग मित्रु । सेरे कंटिक अर्द्धन पइए,
तु अर्द्ध जु नारीश्वर कहिये ।।३।। *अमल चक्षु तु क्षायक दिष्टी,
अनत चक्षु टू ईश्वर सिष्टी । अमित पराक्रम धारी राया,
अतुल सुखातम रूप अकाया ।।४।। अचल प्रकाश अनंत सुलोकी,
लोकालोक विलोकक थोकी । अतुल लब्धि को तही ईशा,
तू जु अयोनी संभव धीशा ।।५।। • अनत कहतां न्यारी सर्व प्रपंच सौ न्यारी हुदै. क्षायक द्रिष्टि जिसकी ॥ पमित कहता जिस की मरजाद अनंतो छ ।।