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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सिद्ध अनन्ता सर्व ही, राज करै या 'रीति । निज निज भाव प्रजा सहित, विलसें सुख जगजीत।।७।। जहां न जन्म जरा मरण, जहां न इष्ट वियोग । रोग न सोग न भोग तन, नहिं अनिष्ट संयोग ।।७।। भूख न प्यास न पाप पुनि, त्रिविध ताप नहिं कोइ । सद्रपा प्रानन्दघन, वस्तु अमूरत होइ ॥८०॥ नारि न पुरषन संड को, नांहि तृषातुर कोय । लोक शिखर निज क्षेत्र में, शुद्ध सिद्ध अबलोय ।।८१॥ रहित नाम बहु नाम जे, रहित रूप अति रूप । ते हमकों निज बोध द्यौ, चिदानन्द चिद्र प ।।२।। लघुता गुरता रहित जे, सदा अगुर लघु जांनि । सिद्ध अनन्ता सर्व सम, तिन से और न मांनि ।।५३॥ ते भगवन्त जिनेश्वरा, तेहि महेश्वर देव । शुद्ध बुद्ध योगीश्वरा, करै सुरासुर सेव ।।४।। सर्व व्यापका बिष्णु ते, भज तिनै सुर राय । लख ज्ञय को ज्ञान में, तातें कृष्ण कहाय ।।८।। सकल वस्तु अवलोकिवौं, रहिवो सब तें भिन्न । वसिवो प्रातम भाव में, कबहूं खेद न खिन्न ।।८६।। सिव कल्याण स्वरूप ते, परम वम्भ परतक्ष । सदा परोखि प्रज्ञान कों, तात कहै अलक्ष ||७|| ईश्वर समरथ सार जे, परमातम परवीन ! मुक्त सर्व गत विमल ते घट घट अन्तरलीन ।।८८।। परम पुरष परबान ते, परम जान भगवान । महादेव महिपाल ते, महाराज गुणवान ।।६।।