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महाकवि दौलतराम कासावास-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अंध कूप वर्णन यहै, पढे सुने जो कोय। सो नर है भवकूप मैं, निज निधि नायक होय ।।७७६ ।।
॥ इति भव फूप वर्णन ।।
-- दोहा
अन्तरात्मा ज्ञान राज वर्णन--
अंतर गति ज्ञाता गुरू, अंतरजामी देव । अंतर प्रातमा ध्यावही, करै सुरासुर सेव ॥७०।। ताके चरण सरोज नामि, पण मि महा मुनिराय । नमि परमागम गुरण कहू, ज्ञानिनि के सुखदाय ।।७८१ ।। भ्रमत भ्रमत भव वन विष, कोइक चेतन राब । चेत स्वतह स्वभाव ही, कं श्री गुर परभाव ।।७८२।। तजि अज्ञान अनादि को, ग्रंथि अविद्या भेन्दि । अनि सरधा सरबज्ञ की, संस भर्म उछेदि ।।७८३।। छाडि भूमि मिथ्यात की, क्रोध लोभ छुलमान । मारि चौकरी प्रथम ही, ले सम्यक गुनथान ।।७४।। तथा देसवत देस ले, दोय चौकरी डारि । अप्रमस थानक तथा, तीन चौकरी मारि ।।७८५॥ सम्यकपुर को प्रादि ले, क्षीणकषाय प्रजंत । अंतरातमा राजई. राज करै मतिवंत ।।७८६।। ता सम भूपन और को, समझवार रिझवार । गो गिक्स भत्र कप तें, पावै पद अविकार ।।७८७।। पदरानी परचीन है. नाम सुबुद्धि अनूप । ग सम्यक अति निश्चला, मंत्री ज्ञान स्वरूप ।।७८८।।