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अध्यात्म बारहखड़ी
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अनुस्वारो जु विसर्ग है, ए सव बावन अक । ग्रा इ ई श्री लगे, चौदा सुर जु निशंक II ।। क का आदि हकारलौं, विजन है लेतीस । अं अनुस्वारो जानियें, अः विसर्ग धर ईश ।।६१।। पुलतज कहिये उच्चसुर, वह जु त्रि मात्रा जांनि । गज कुभा वृति गुरनितें, जिह्वा मूलि प्रत्रांनि ६२।। द्वापंचाशत अक्षरा. बहुरि जिके बीजांक । संयोगी द्वित अक्षरा, सबकी प्रगट शिवांक ||६३।। सब अक्षर के आदि ही, रार्ज प्ररणव स्वरूप । ॐकार अपार प्रभु. प्रापं पाप अनूप ।।१४।। सो अक्षर नहीं और है, अक्षर रूप सु पाप । ताते ॐ पाप है, हरें सकल संताप ॥६५।। देव शास्त्र गुरु की कृपा, तात प्रानन्द पूत । भाषे अक्षर बांबनी, नमि जिन मनि जिन मून ||६६||
मागें चउवह स्वर अनुसार विसर्ग । एषोऽसाक्षर स्याम मुख्य प्रकार, प्रकार बिना ककारादि सर्व प्रक्षर खोडा छ। फ असो शब्द उचार कोजे । तब भइसौ सुर-ककार में उपरे । सर्व अक्षरां को जीवजोग प्रकार छ । तातें प्रथम ही प्रकार को व्याख्यान करै छ । सा एकाक्षरी नाममाला में प्र नाम हरिहर को कहो सो हरिहर जिन भगवान ही को नाम छ । पापां न हर । तास्यों हर सारा का तीस्यों हरियम कूजर ने भयकारी । सिंह समान तीस्यों । हरि सर्व कर्म में जोते। लिस्यों जिन सो ए नाम एक श्री जी का छ।
श्लोक
अनादिनिधनं वंदे, जिनं हरिहाभिधं । अलक्षं लक्षणोपेतं, अमरामरमीश्वरं ।।१।।