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महाकवि दौलत राम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
नही जु सून्य बादि को, जिनो अनादि आदि को । तुही जु स्यादवादि को, अनंतभेद है इको ।। सदा जु सप्तभंग भास को, अनंत भास को। प्रभास है प्रकास है, अनाम है विभास को ।।६।। प्रणाथि को जु प्राथिको, जिनंद लंवहाथ को। सदा जू सर्वसाथ को, बिलोकनाथ नाथ को ।। सही जू तीरथंकरो, तिथंकरो शिवंकरी । तुही सुबुद्धिदाय को, अपाय को अकिकरो ।।६।।
प्रणाथि को कहता प्रणापि जे निरगंय साधु स्यां को पति छ प्रश्वा प्रापही बहिरंगा कमलास्यौं अलिप्त सर्व परिग्रह रहित नगन दिगंबर छ अथवा प्रणाथि जे गरीब लोक त्याको प्रतिपाल छ अथवा प्रणापि जे निगोदावि यावर जीव ज्यांक इंत्री प्राणाविक की प्रापि मोडी त्यांको बमाल छ अथवा प्रणाथि जो प्रस्नोकाकास जहां जीवावि पदार्थ नही शून्य रूप प्रमंती छ । तीई को शायक मतरजामी छ ।। प्रर प्राथिको कहतां प्रास्तिका धरणी जो ऋद्धिधारी मुनि त्यो को नाथ छ अथवा साप ही अन्वत ऋद्धि सिद्धि समृद्धि को भरधौ छ । अनंत लक्ष्मी को नाथ छ अथवा प्राथि का धणी इद्र चक्रवां विक त्यांको नाम छ । अथवा सभाग्या धनवंत लोक स्योको प्रभू छ मथवा इंडियाविक की प्राथि जांफ प्रसा मेथे इद्री प्राषिक जंगम जोब त्याको रक्षक दयापाल ॐ अथवा प्राथि मो लोकाकास जहाँ जीवावि परारय पाशे तोको धनी छ लोक को स्वामो छ ।
प्रभु जु केबलीस जो, अनादिकाल ज्ञायको । सुरेश यस्य पायको, तुही जिनो अमाय को ।। सही निजक्य दायको, तुही अंनंत ज्ञायको । जु सादि औ अनादि रूप, तू जु तत्व नायको ।।६२।। पुराण है, पुनीत है, सहीं सुयोगि गम्य है । बीतीत है प्रतीत है, सही सुलोक रम्य है ।। चिदात्म है सुखात्म है, अनंतभाव स्वात्म है । • भवांत है अद्यांत है, तमांत है निजात्म है ।।३।।