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बिवेक विलास
रहित रजोगुण राव जे, रहित तमोगुण भाव । रहत सुभासुभ संत ते, निर्गुण है निरदाव ।।६।। महा महंत अनंत ते, सर्व गुणनि के नाथ । गुण पर्याय स्वभाव गण, सदा घरमा निज साथ ।।६।। रमि जु रहे निज भाव में, तातै तिनको राम । कहिये सूत्र सिधंत में, रहित क्रोध पर काम ।।१२॥ तीन भुबन के चंद ते, तीन भुवन के सूर । तीन भुवन के नाथ ते. गुण अनंत भरपूर ।।३।। जैसें चितामरिण बहुत, सब कौं एक स्वभाव ।
से सिद्ध अनंत ही, समभाव दरसाव ||४|| भये अनंता रिश प्रभु, होमी 'कल नंग सब को मेरी वंदना, सेवं साह महंत ॥६५॥ करै पाप सम दास कौं, बड़े गरीब नवाज । रहित कामना कलपना, भज जिनें मुनिराज ।।१६।। निज दौलति बिलसं सदा, महाप्रभू निजरूप । वस भावपुर में प्रगट, परमानंद स्वरूप ||६|| नाम भावपुर की भया, कहै अभंपुर साध । वसै सासतौ सुख मइ, जहां न कोइ वाघ ।।६।। निश्चै वास स्वभाव मैं, व्यवहारें जगसीस । उपचारै घट घट विर्ष, व्यापक सदी अधीस |९| सब को सादि सभाव है, तातै एकहि ईस । कहिए ग्रंथनि के विषै, चिदानंद जगदीस ।।१०।। है अनन्त सब एकसे, ताते एकहि ध्यान । करै महामुनि भाव सौं, ते पावै निज ज्ञान ।।१०१।। सिद्ध भक्ति इह भाव धरि, पढे सुनै नर नारि । ते निरवेद दसा लहैं, जिन पाशा उर धारि ।।१०।।