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महाकचि दौलतराम कासलीवाल- व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तब आई गंधर्वबता गुणरासिका,
लैकें वीन प्रवीन महारस भासिका ||२६|
नांम सुघोषा वीन सुलक्षणा की भरी,
ताके तारनि मांहि सुवरस रसभरी । बीन बजाई शुद्ध जबै विद्याधरी,
हृते वीन परवीन तिनों की सुधि हरी ||३०|
जानी इह गंधर्व सूत्र की मूरती,
श्रर इह सब संगीत कला की सूरती ।
जीति सक्यो नहीं कोई वीन मैं नागरा,
सब को जीति सुजान हियं गुण आगरा ||३१॥
जीवंधर की वीरणा प्रतियोगिता में विजय -
तवै जीतिवा याहि धीर जीवंधरा,
सकल कला परवीन वान मैं तत्परा । प्राये सभा मझार सार गुण के भरे,
पक्षपात सौं रहित तिने साखी करे ||३२|०
अधिकारीनि सौं की देहू वीरणा हमें,
जिनके तार बजाय चित्त प्रति ही रमे ।
वीन क्यारि तिन ल्याय चतुर के हिंग धरी,
बोल्यो तब परवीन बीन दूषरण भरी ||३३||
केस रोम लव श्रादि इनों में योगुना,
हम को दे ए बीन रोग चाहीं सुना ।
यो तिन सौं कहि सौंपि दई र बोलिया,
सुनि हो नभचर सुता गांठ उर खोलिया ।। ३४ ।।
जो तू मछर रहित महागुण की भरी,
तौ तेरी दे दीन वजांऊ चित घरी |