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________________ २० महाकचि दौलतराम कासलीवाल- व्यक्तित्व एवं कृतित्व तब आई गंधर्वबता गुणरासिका, लैकें वीन प्रवीन महारस भासिका ||२६| नांम सुघोषा वीन सुलक्षणा की भरी, ताके तारनि मांहि सुवरस रसभरी । बीन बजाई शुद्ध जबै विद्याधरी, हृते वीन परवीन तिनों की सुधि हरी ||३०| जानी इह गंधर्व सूत्र की मूरती, श्रर इह सब संगीत कला की सूरती । जीति सक्यो नहीं कोई वीन मैं नागरा, सब को जीति सुजान हियं गुण आगरा ||३१॥ जीवंधर की वीरणा प्रतियोगिता में विजय - तवै जीतिवा याहि धीर जीवंधरा, सकल कला परवीन वान मैं तत्परा । प्राये सभा मझार सार गुण के भरे, पक्षपात सौं रहित तिने साखी करे ||३२|० अधिकारीनि सौं की देहू वीरणा हमें, जिनके तार बजाय चित्त प्रति ही रमे । वीन क्यारि तिन ल्याय चतुर के हिंग धरी, बोल्यो तब परवीन बीन दूषरण भरी ||३३|| केस रोम लव श्रादि इनों में योगुना, हम को दे ए बीन रोग चाहीं सुना । यो तिन सौं कहि सौंपि दई र बोलिया, सुनि हो नभचर सुता गांठ उर खोलिया ।। ३४ ।। जो तू मछर रहित महागुण की भरी, तौ तेरी दे दीन वजांऊ चित घरी |
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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