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________________ जीवंधर स्वामि चरित सो व्यापार निमित्त आहे ह्यां प्रभू, रतन दीप के मांहि रतन बहुते विभू । ताही तें इह काज सिद्ध गौ महा, अतिसार ए तात भाषि चप रहा ||२३|| कैयक दिन में तहां वरिष्कपति आइयो, खुसी हुवो खग भूप ताहि उर लाइयो । पाहुन गति प्रति करी रीति पाली सर्व, करि प्रति चित्त प्रसन्न बात भाषी तबै ||२४|| तेरे मेरे भेद रह्यो नांही भया, तन मन जन धन धांम एक हूं परणया । मेरी तेरी सुता दोय नाही मनी, तेरे पुर परणाय व्याह को धनी ||२५|| चीन बजाय रिझाय याहि जीते जिको, वर पुत्री को होय घोर निश्च तिको। ए सुनि खग के वैन सेठ जिम जो, मित्राई प्रतिपाल धर्म में रत्त जो ॥ २६॥ निज पुत्री सम जांनि विद्याधर की सुता, लेय गयो निज नगर बहुत स्वग संजुता । रच्यो स्वयंवर गेहू मनोहर वन महैं, जाकी सोभा देखि देव अचिरज गर्हे ॥ २७॥ बहुत कला में निपुन भूचरा खेचरा, १६ ये अति सुकुमार बीन में तत्परा । प्रथमहि पूजा करी देव जिनराय की, महा मंगलाचार कररण सुखदाय की ||२८| जब प्राये सव सुघर स्वयंवर साल में, दीप अधिकी कान्ति जिनों के भाल मैं
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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