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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पिता सहित जिनदत्त पूजिवा आइ है,
दे परदक्षणा जोरि हाथ सिरनाइ है ।।१६।। गपडवेग है जहां जायगौ दरसने,
देखि तहां जिनदत्त भक्ति रस सरसन । करिहै तासौं प्रीति धर्म अनुराग सौं,
जांनै गौ इह प्रीति भई बड भाम सौं ।।१७।। खग मैं वामैं भेद भाव रहि है नहीं,
होनहार इह बात अलप दिन मै सही । ताही ते इह काज सरैगो ब्याह की,
ताही के पुर ब्याह -होय उछाह को ।।१८।। ए मुनि भाषे वैन मोन खै नाथ जी,
ते मै तोसौ कहै सकल बड़ हाथ जी । मुनि भाषी सो भई प्रीति जिनदत्त सौं,
भेद रह्यो नहि कोई जैनमत रत्त सौ ।।१६।। अब तु सुनि जा भांति मिल संजोग जी,
वृषभवास बड भाग गयो मुनि जोग जी। जिनदत्तहि सब सौंप साध गुरणपाल पैं,
दिक्षा लीनी देव सकल अघटाल पं ॥२०॥ बहुरि सुव्रता पासि त्यागि जग की मती,
भई अर्यका सेठ नारि पदमावती । जे कुलवंती नारि पतिव्रत धारिणी,
तिनको एई रीति कही सुभकारिणी ॥२१॥ अब जिनदत सपूत पाय पद तात की,
परकास निति धर्म घातिया घातको। अतुल द्रिव्य को ईस सीस सेठांनि को,
सिख्या दायक धीर सुगुर जेठानि को ।।२२॥