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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
एक दिवस गंधर्ववत्ता उपवासिया,
जाय देहरें पूजि देव गुण रासिया | ग्राम पिता को दई प्रासिका सुभकरी,
देखी खेचरराय ताहि जोवन भरी ॥४॥
तब पूछयो परधान नांममति सागरा,
देहि कौन कौं याहि कहो गुण प्रागरा | तब वोल्यो परधान सुन भूपाल जो,
मंदिरगिर गयो सकल दुख टालजी ||५|| नंदन वन के मांहि पूर्व दिसि बेहुरा ।
तहां वंदिया देव जगत के सेकुरा । दरसन कारणि नांम विपुलमति चारणा,
श्राये हे जोगीस जगत के तारणा ||६|
करि प्रणाम मै सुन्यों धर्म जिनराय को,
जगत पूजि जग पार कर सुखदाय को ।
बहुरि पूछियो एह कहो जग तातजी,
मेरे नृप की सुता रूप विख्यात जी ||७|| ताहि को पति कौन तवं मुनि बोलिया,
मुझ परि होय दयाल अवधि द्विग खोलिया ।
गंधदत्ता के विवाह की भविष्यवाणी
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भरत क्षेत्र के मांहि देस मांगा,
तहां रामपुर नगर हरे सुरपुर मदा ||८||
सत्यंधर भूपाल सत्य भूषरण घरा,
ताके विजया नांम महारांनी परा I
तिन को सुत मतिवान वरें तांको सही,
कौन रीति करि सोहु धारि तू उर मही ||६||