Book Title: Kshatrachudamani
Author(s): Niddhamal Maittal
Publisher: Niddhamal Maittal

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ क्षत्रचूड़ामणिः । क्या तुम भी चूर्णकी परीक्षा करके गुणमालाका चूर्ण उत्तम तत्र सुरमञ्जरीकी दासी क्रोधित होकर कहने औरोंने बतलाया वैसा ही तुमने कहा एक ही शाला में पढ़े हो तब जीवंधर पृथक २ करके फैलाया गुणमालाके आकर उस पर मंडराने लगे यह देख कर वहां चली गई और अपनी स्वामिनीसे सब वृत्तान्त जासुनाया तत्र सुरमञ्जरी अपनी प्रतिज्ञानुसार विना स्नान किये कि मैं जिवघर स्वामीको छोड़कर दूसरेके साथ विवाह नहीं करूंगी ऐसा मनसे संकल्प करके वहांसे चली गई गुणमालाको अपनी सखीके विना स्नान किये चले जानेपर अत्यन्त दुःख हुआ अंत में वह भी स्नान करके घर के लिये चल दी चलते समय रास्ते में काष्टाङ्गारके अपने स्थानसे छूटे हुए मदोन्मत्त हस्तीने मनुष्योंमें खलवली मचाते हुए गुणमालाको अघेरा देख गुणमालाके कुटुम्ब गण सब भाग गये उनमें से बची हुई एक गुणमालाकी धाय जोरसे चिल्लाने लगी जिसके शब्दको सुनकर जीवंधर और उसके हाथीको कुण्डलसे ताडितकर भगा जीवंधर और गुणमाला में परस्परके अवलोकनसे प्रेम उत्पन्न हुआ अंत में गुणमाला जीवंधर के प्रेमको हृदय में छिपाये हुए घर चली गई घर जाकर क्रीडाके तोतेको पत्र देकर जीवंधर के समीप भेजा गुणमाला के माता पिताको इन दोंनो के प्रेम भबकी वार्ता विदित हो जाने पर उन्होने जीवंधर के साथ गुणम ला का विवाह कर दिया | कुमार वहां आये दिया उस समय एक दूसरे के प्रति ११ कुमारने चूर्णकी बतलाया । लगी जैसा उनके साथ दोनोंके चूर्णोको सुगंधता से भरे सुरमञ्जरीकी दासी

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 296