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१० श्री जीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवन चरित्र ।
चौथा लम्ब। इसके अनंतर वसंत ऋतुमें नागरिक मनुष्यों की जलक्रीड़ाको देखनेके लिये जीवंधर कुमार अपने मित्रोंके साथ वनमें गये जाते समय रास्तेमें हव्य सामग्रीको दूषित करने के कारण याज्ञिक ब्राह्मणोंसे मारे हुए कुत्तेको देख कर अत्यन्त दया युक्त होकर उसके जिलानेकी चेष्टा करने लगे मिलानेकी चेष्टाएं सफ लत न देख कर परलोकमें आत्माको सद्गति देनेवाले पंच नमस्कार मन्त्रका उसके कानोंमें उपदेश दिया। उस मंत्रके प्रभावसे यह पापिष्ट श्वान मर कर यक्ष जातिके देवोंका स्वामी यक्षेन्द्र हुआ पश्चात यक्षेन्द्रने अवधिज्ञानसे अपनी आत्माका वृतांत जानकर अपना उपकार करने वाले कुमारके समीप आकर उनकी पूजा की पश्चात् "किसी कार्यके करनेके लिये मुझे स्मरण कीनिये" यह कहकर तिरोहित हो गया। - तत्पश्चात् कुमारने अपने इष्ट स्थानकी ओर प्रस्थान किया उस जलक्रीड़ामें सुरमञ्जरी और गुणमाला नामकी दो कन्यायें भी आई थीं उन दोनों कन्याओंने अपने २ चूर्णकी उत्तमतामें वाद विवाद किया । गुणमाला यह कहती थी कि मेरा चूर्ण तेरेसे अच्छा है और सुरमञ्जरी भी ऐसा ही कथन करती थी अंतमें दोनोंने यह प्रतिज्ञा की कि जिसका चूर्ण परीक्षामें उत्तम निक लेगा वह जल स्नान करेगी और दूसरी विना स्नान करे वापिस घर चली जयगी फिर उन दोनों कन्याओंने चूर्ण देकर अपनी २ दासिय विद्वानोंके समीप भेनी वह दासीयें अन्य विद्वानोंसे परीक्षा करा कर अंतमें जीवंधरके समीप पहुंची और अपने २ चूर्णकी परीक्षा कराने के लिये प्रार्थना की जीवंधर स्वामीने दोनों