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क्षत्रचूड़ामणिः । श्री दत्त उसके इस वृत्तान्तको सुनकर अपने धनके नष्ट न होनेसे प्रसन्नता पूर्वक उसके साथ चल दिया और वहां राजाके दर्शन कर अत्यन्त प्रसन्न हुआ राजाने भी अभिन्न हृदय मित्रके सदृश इनका अतिथि सत्कार किया । पश्चात् अपनी गन्धर्वदत्ता नामकी पुत्री इसे सोंप दी और यह कह दिया कि इसकी जन्म लग्नके समय ज्योतिषियोंने यह कहा था कि “राजपुरीमें जो कोई इसे वीणा बनानेमें जीतेगा वह इसका पति होगा" इस लिये इस कार्यके करनेके योग्य आप ही हैं।
श्री दत्त भी गन्धर्वदत्ताको लेकर अपने घर आया और अपनी स्त्रीसे उसका सारा वृत्तान्त कह कर काष्टाङ्गार राजाकी अनुमति पूर्वक एक भारी मंडप बनाकर इस बातकी घोषणा कराई कि "जो मेरी पुत्रीको वीणा बनाने में जीत लेगा उसके साथमें अपनी गन्धर्वदत्ता नामकी पुत्री ब्याह दूंगा” इस घोषणाको सुनकर सब राजा लोग वीणा मण्डपमें अपनी २ वीणायें लेकर आये किन्तु कन्याकी परिवादिनी नामकी वीणाके बनानेमें सब राजागण परानित हुए इतने में इनमें से जीवंधर कुमारने अपनी घोषवती नामकी बीणा बनाने में कुमारीको जीत लिया। कन्याने इस पराजयको विजयसे भी बढ़कर समझकर जीवंधर स्वामीके गलेमें वरमाला डाल दी।
इस सब घटनाको देखकर दुष्ट काष्टाङ्गारने आगन्तुक राजाओंको जीवंधरके साथ लड़नेके लिये भड़का दिया और इसके कथनानुसार अन्तमें वे सब लड़कर पराजयको प्राप्त हुए ।