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(१९) उक्त कतिपय उद्धरणों से आपको मालूम हो गया होगा कि प्रस्तुत गीता एक मौलिक धर्म-शास्त्र बन गया है ।
कृष्ण-गीता और भगवद्गीता इन दोनों गीताओं में दो बातों की समानता है---- १-दोनों में कृष्णार्जुन के संवादरूपमें विवेचन है ।
२.-दोनों में कर्मयोग को मुख्यता देकर धार्मिक और सामाजिक सुधार तथा समन्वयकारी क्रांति का समर्थन है ।
परन्तु दोनों में भेद भी हैं । प्रस्तुत ग्रंथ के साढ़े नवसौ पद्यों में साढ़े नव पद्य भी ऐसे नहीं हैं जिन में भगवद्गीता के किमी पद्य के अनुवाद की छाया हो । पूर्णानुवाद तो एक भी न मिलेगा । वर्णन-शैली और विषय का भी बहुत अन्तर है । इस प्रकार पर्याप्त अन्तर है पर निम्न लिखित अन्तर विशेष ध्यान देने योग्य हैं ।
१-भगवद्गीता में १८ अध्याय हैं, कृष्णगीता में १४ अध्याय हैं।
२-भगवद्गीता में गीत नहीं हैं । प्राचीन संस्कृत साहित्य में साधारण पद्य के अतिरिक्त गीत लिखने का रिवाज़ ही नहीं था परन्तु आज तो गीतों का विशेष स्थान है, गीता नाम की पुस्तक में गीत न हों यह जरा अटपटा सा मालूम होता था । इसलिये इस ग्रंथ में इकत्तीस गीत रक्खे गये हैं।
३-भगवद्गीता में दर्शन-शास्त्र का काफी विवेचन है और इस ढंग से है मानों उन दर्शनों का परिचय देने के लिये किया गया है । पर धर्म-शास्त्र से दर्शन-शास्त्र अलग है इसलिये प्रस्तुत गीता में दर्शनों का परिचय नहीं दिया गया है । धर्म और