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अर्जुन
कृष्ण- गीता
नक्माँ अध्याय
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दोहा
माधव क्या सापेक्ष है यह माग जंजाल " ध्रुव है મી अध्रुव यहां विकट काट की चाल ॥१॥ गीत १९
जगकी कैसी अजब कहानी |
सब चचल है पर इसकी चंचलता किसने जानी ॥२॥ चंचल अनल अनिल भी चचल चचल है यल पानी । रवि आणि तारागण भी चंचल सत्र मे खीचातानी || जगकी कैसी अजब कहानी ||३|| निवल सबल निर्धन चचल है चचल राजा रानी | वैभव की थिरता तो जग मे कौडी मोल बिकानी || जगकी कैसी अजब कहानी ||४|| खाली आते खाली जाते कृपण धनेश्वर दानी | फिर भी खीचातानी दुनिया कैसी है दीवानी ॥ जगकी कैसी अजब कहानी ||५|| मिली अचंचल वस्तु न कोई कण कण दुनिया छानी । फिर भी यह धोखे की टड्डी किस किमने पहिचानी || जगकी कैसी अज़ब कहानी ||६||