Book Title: Krushna Gita
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 157
________________ चौदहवाँ अध्याय [ १२७ एक बात अच्छी यहाँ वहाँ बुरी हो जाय । देशकाल अनुकूल जो वही समझ सदुपाय ॥६९॥ मव शास्त्रों को देख तू देशकाल मत भूल । सत्य, असत्य बने वहाँ जहां समय प्रतिकूल ॥७०॥ देशकाल के भेद से दिखता जहां विरोध । समभावी बन, कर वहाँ शुद्धबुद्धि से शोध ॥७॥ त. तो न्यायाधीश है हैं सब शास्त्र गवाह । शुद्ध बुद्धि से न्यायकर अगर सत्यकी चाह ॥७२॥ यदि विकार है शास्त्र में तोभी क्या पर्वाह । सब विकार धुल जाँयगे पाकर बुद्धि--प्रवाह ॥७३॥ शास्त्र-परीक्षण कर सदा करले निकप विवेक । सार सार सब खींचले सब अनेक हा एक ॥७४॥ विधि-दृष्टान्त स्वरूप दो धर्म शास्त्र के भेद । नियम और दृष्टान्त से भरे हुए सब वेद ॥७५॥ मनके तनके वचन के पापों पर परमास्त्र । अन्तर बाहर के नियम बतलाता विधि शास्त्र ॥७६॥ उन नियमों की सफलता या उनका व्यवहार । बतलाते दृष्टान्त हैं धर्मशास्त्र का सार ॥७७॥ नियम बदलते हैं सदा देशकाल-अनुसार । जिनसे जनकल्याण हो हो उनका व्यवहार ॥७८॥ किसी शास्त्र में हैं नियम देशकाल-प्रतिकूल । उन्हें बदल पर रख विनय अहंकार है भूल ॥७९॥

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