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चौदहवाँ अध्याय
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यदि विवेक तुझ में नहीं तो क्या गुरुकी छाप । यदि विवेक है तो बना तू अपना गुरु आप ॥११३।। तुझ में अगर न योग्यता व्यर्थ देव-गुरु-शास्त्र । कायर निर्बल के लिये व्यर्थ सकल दिव्यास्त्र ॥११४॥ हैं निमित्तभर देव गुरु उपादान तु आप । उपादान बेजान तो व्यर्थ निमित्त कलाप ॥११५॥ उपकारी हैं देवगुरु पूज्य इन्हें तू मान । पर पलभर भी भूल मत त अपनी भगवान ॥११६।। सबकी सुन पर सोच खुद देख सुदृष्टि पसार । है शास्त्रों का शास्त्र यह खुला हुआ संसार ।।११७॥
(गीत ३१) भाई पढ़ले यह संसार । ग्वला हुआ है महाशास्त्र यह जिस में बंद अपार ।
भाई पढ़ले यह मंसार ॥११८॥ अणु अणु में पत्तों पत्तों में लिखा हुआ है ज्ञान | पढ़ सकती अन्तर की आँखें, पढ़े वही विद्वान ॥
है सारा जग विद्यागार ।
भाई पढ़ले यह संसार ॥११९॥ अनुभव और तर्क दो आँखें अनन मारे बंद । देख सके सो देख भाई काला और सफ़ेद ॥
अद्भुत पुण्य पाप भंडार । भाई पढ़ले यह संसार ॥१२०॥