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चौदहवाँ अध्याय
[ १२५ परम भक्त गुणदेव के व्यक्तिदेव गुणखानि । तारे जो संसार को कर पापों की हानि ॥६०॥
गीत ३० सब देवों का दार भरा है भाई । है सत्य सभी का पिता अहिंसा भाई ॥
ये मात-पिता शिव-शिवा ब्रह्म सह माया । परमेश्वर परमेश्वरी गुणों की काया ॥ श्री ी धृति लक्ष्मी बुद्धि इन्हीं की छाया ।
सब ही शास्त्रों ने गान इन्हीं का गाया ॥ सदसद्विवेक सत्प्रेम-रूप सुखदाई । है सत्य सभी का पिता अहिंसा भाई ॥६१॥
सब सम्प्रदाय हैं स्थान जमाये इन में । सब शास्त्र खड़े हैं शीस नमाये इन में ॥ सारे योगी हैं योग रमाये इनमें ।
जगके सारे गुणदेव समाये इनमें ॥ है लीन इन्हीं में शक्ति न्याय चतुराई । है सत्य सभी का पिता अहिंसा माई ॥६२॥
इनके जो सच्चे भक्त जगत में आते । वे ऋषि तीर्थकर या अवतार कहाते । इनकी पूजा कर जग-सेवा कर जाते ।
इनके अनुपम सन्देश जगत में लाते ॥ उनमें भी इनसे देवरूपता आई । सब देवों का दर्बार भरा है भाई ॥६॥