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बारहवाँ अध्याय
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कारहवाँ अध्याय
.. अर्जुन---- __ [हरिगीतिका]
माधव, दयाकर मार तुमने सर्व धर्मा का कहा । सुखका बताया मार्ग तुमने फिर भला क्या बच रहा। फिर भी न जाने हो रहा है हृदय में यह ग्वद क्यों । 'सब धर्म सुख-पथ-रूप हैं फिर है सभी में भेद क्यों ॥१॥ कोई अहिंसा का प्रचारक है दया अवतार सा । कोई बना हिंसा-विधायक कर भ का भार सा । कोई निवृत्ति लिये रहे वन को बनाता धाम है । कोई प्रवृत्ति लिये रहे करता सदा सब काम है ॥२॥ कोई न माने मूर्तियाँ केवल बताता ज्ञान है । कोई बताता मूर्तियों में ही वसा भगवान है । कोई यहां है कह रहा सब वर्ण--आश्रम व्यर्थ हैं । कोई समझता वर्ण आश्रम के बिना हम व्यर्थ हैं ॥३॥