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तेरहवाँ अध्याय
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__ गीत २९ वथा है कमवाद का गान । नहीं यदि मकर्मों का ध्यान ॥
यदि ईश्वर को दूर हटाया । युक्ति तर्कका खेल दिखाया ।
कर्मवाद का शंख बजाया । नथ्य मन्य फिर भी न बना र्याद हुआ न कृतिका भान ।
वृथा है कर्मवाद का गान ।
नहीं यदि सत्कर्मों का ध्यान ॥४६॥ कर्म क्षमा न करेगा भाई । वह न सुनेगा कभी दुर्हाई ।
लेलेगा वह पाई पाई । जैसी करनी वैसी भरनी कर्मवाद पहिचान ।
वृथा है कर्मवाद का गान ।
नहीं यदि सत्कर्मों का ध्यान ॥४७॥ अँधियारा हो या उजियाला । हो या नहीं देखनेवाला ।
पिया किसीने विष का प्याला । होगी मौत, भले ही विषका हो गुणगान महान ।
वृथा है कर्मवाद का गान । नहीं यदि सत्कर्मों का ध्यान ॥४८॥
दोहा कर्म मानकर यदि रहा पुण्य पाप का ध्यान । ईश्वर माना या नहीं है आस्तिक्य महान ॥४९॥