Book Title: Krushna Gita
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 139
________________ तेरहवाँ अध्याय पर की आँखों में जगत तब क्यों डाले धूल । जब ईश्वर है देखता दंड-अनुग्रह-मूल ॥३५॥ श्रद्धा ईश्वर पर रहे रहे परस्पर प्यार । दिख न पड़ें तब जगत में चोरी या व्यभिचार ॥३६॥ श्रद्धा ईश्वर पर नहीं और न उसका ज्ञान । इसीलिये है पापमय यह संसार महान ॥३७॥ गीत २८ जगत तो भूला है भगवान । हुआ है छलनामय गुणगान ॥ जगत अगर जगदीश मानता । यदि अमोघ फलदान जानता । तो क्यों फिर विद्रोह ठानता । क्यों होता इस धरणीतल पर पापों का सन्मान । जगत तो भूला है भगवान । हुआ है छलनामय गुणगान ॥३८॥ यदि होता विश्वास हमारा । ईश्वर-व्याप्त जगत है सारा । तो असत्य क्यों लगता प्यारा ॥ धूल झोंकते क्यों पर की आँखों में हम नादान । जगत तो भूला है भगवान । हुआ है छलनामय गुणगान ॥३९॥ 'दुनिया को क्या अन्ध बनाया । जब जगदीश्वर भूल न पाया ।

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