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कृष्ण-गीता कोई यहां है भक्ति का सन्देश जग को दे रहा। कोई न माने भक्ति भी बस त्याग का रस ले रहा । हैं पंथ नाना दिख रहे समझू भला क्यों. एक हैं ? यदि एक हैं तो सर्वदा रखते वृथा क्यों टेक हैं ॥४॥ किस का करूं मैं अनुसरण किसकी न मानूं बात मैं । निर्णय कहो कसे करूं करुणा करूं या घात मैं । जब धर्म सब ही सत्य हैं तब कौन से पथमें चलूं ?
कर्तव्य-पथ में किस तरह आगे बढू फूलू फलूं ॥५॥ श्रीकृष्ण----
गीत २ अर्जुन, सब की एक कहानी। पंथ जुदा है घाट जुदे हैं पर है सब में पानी ॥
अर्जुन सब की एक कहानी ॥६॥ जब तक मर्म न समझा तबतक होती खीचातानी । पर्दा हटा हटा सब विभ्रम दूर हुई नादानी ॥
अर्जुन सब की एक कहानी ॥७॥ वर्ण अवर्ण, अहिंसा हिंसा, मूर्ति न मानी मानी । क्या प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति क्या सब है धर्म निशानी ।
अर्जुन सब की एक कहानी ॥८॥ यह विरोध कल्पना शब्द की होती है मनमानी। लड़ते और झगड़ते मूरख करें समन्वय ज्ञानी ।
अर्जुन सबकी एक कहानी ॥९॥