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कृष्ण गीता सात्त्विक काम जहां जहां दे न सके आनन्द । वहां वहां पर मोक्ष ले दूर हटा दुग्वद्वंद ॥७६॥ काम मोक्ष मिल कर करें यह संसार समार । जड़ता-पूजक बन न तू सार-असार विचार || मोक्ष न जड़ता रूप हे मोक्ष नहीं आलस्य । मोक्ष न है कोई नशा यह कल्याणरहस्य ॥७॥ कवच धनुप रथ ज्या मिले तब तेरा उद्धार । चारों के महचार में तेरा जयजयकार ॥७९॥
पद्मावती ल धर्मधनुष बन अर्थरथी ज्या काममयी चढ़ जाने । तू निर्भय रह है कवच मोक्ष दुग्ख डरवाते डग्याने दे। कर्तव्य निरंतर करता रह शंका को जगह न पान दे। यह सब धी का मर्म यहां कर्तव्य रूप में आने दे ॥८॥ रो रही यहां पर धर्म नीति है अर्थ संकटापन्न यहां । धन धर्म संकटापन्न देख हो रहा काम अवमन्न यहां ॥ हो रह सकल पुरुपार्थ व्यर्थ छाई है जड़ता की छाया । टंकार बजा जगपड़े विश्व उड़ जाय अधर्मों की माया ॥८१॥