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कृष्ण-गीता
मोक्ष न आया हाथ में पाया केवल काम । प्यास बढ़ी आतुर वना मिल न सका आराम ॥१२॥ तृप्ति न केवल काम से बुझ न पूरी प्यास । पूर्ण तृप्ति है मोक्ष से हटते सारे त्रास ॥१३॥ आशा-पाश अनन्त है तोड़ न सकता काम । पाश तोड़ना मोक्ष है मुख स्वतन्त्रता-धाम ॥१४॥ कर प्रयन्न जिससे रहे काम मोक्ष का साथ ।
जीवन का साफल्य तब होगा तेरे हाथ ॥१५॥ अर्जुन-...
माधव मोक्ष यहां कहां वह अन्यन्त परोक्ष । जबतक यह जीवन रहे तबतक कैसा मोक्ष ॥१६॥ जीवन छूट मोक्ष है जीवन रहते काम । तब जीवन कैसे बने काम मोक्ष का धाम ॥१७॥ एक हाथ में मोक्ष हो एक हाथ में काम । है अतथ्य यह कल्पना है यद्यपि अभिराम ॥१८॥ दो ऐसा संदेश तुम बने पूर्ण व्यवहार्य ।
केवल कवि की कल्पना पूरा करे न कार्य ॥१९॥ श्रीकृष्ण
अर्जुन तूने मोक्ष का समझ न पाया सार । समझ रहा परलोक में बना मोक्ष--दर्बार ॥२०॥ पर यह तेरी कल्पना है बस मनका भार । ढंढ यहीं मिल जायगा तुझे मोक्ष का द्वार ॥२१॥