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दसवाँ अध्याय
अध्याय दसवाँ
अर्जुन
गीत २१ तुम्हारा अद्भुत अन्तर्ज्ञान ।
जगत है देख देख हैरान ॥ चक्र सुदर्शन छोड़ा तुमने आये खाली हाथ । ज्ञान चक्रसे बना दिया पर मुझको निर्भय नाथ ॥
किया कायरता का अवसान ।
तुम्हारा अद्भुत अन्तर्ज्ञान ॥१॥ मत्यासत्य अहिंसा हिंसा के बतलाये भेद । ऐसा रस दे दिया निचोड़े मानों सारे वेद ॥
बनाया धर्म विवेक-प्रधान ।
तुम्हारा अद्भुत अन्तर्ज्ञान ॥२॥ उलझी से उलझी भी सुलझी करदो करुणागार । जीवन नैया तुम्ही खिवैया पकड़ चलो पतवार ॥
पार पहुँचादो जीवन यान । तुम्हारा अद्भुत अन्तर्ज्ञान ॥३॥