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कृष्ण-गीता तीसरा अध्याय
अर्जुन
दोहा माधव मेरा प्रश्न यह, बना गूढ से गूढ । पथ न सूझता, में हुआ किंकतव्य-विमुढ ॥१॥ बात तुधारी ठीक है, पर मेरी भी ठीक । कैम मै निश्चय करूं, क्या है लीक अलीक ॥२॥ ममभावी बन युद्ध हो, मिले योग से भाग । करते हो जल अनल में, यह कैमा महयोग ॥३॥ ये दोनों कैसे बनें, युद्ध और समभाव । चतुर खिलाड़ी वालदा कैसा है यह दाव ॥४॥ चार महाभारत बना, यह मन का संग्राम । करूं समन्वय किस तरह, कैसे हो विश्राम ॥५॥
गीत ६ ___ भाई, समन्वयी संमार । विविध रसों का मेल नहीं हो, तो है जीवन भार ॥
भाई, समन्वयी संसार ॥६॥ मीठा ही मीठा भोजन हो, फिर क्या उसमे स्वाद । अम्ल तिक्त लवणादि रमों के बिना स्वाद बर्बाद ।।
फिर तो भोजन है बंगार ।।
भाई, समन्वयी संसार ॥ ७॥ सुन्दरता के लिये एक ही रंग नहीं तृ घोल । रंगों का है जहाँ समन्वय चित्र वहीं अनमाल ॥