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कृष्ण-गीता
दोन बोला था " दूंगा नहीं सुई की नोक । दूंगा सार पांडव दल को मृत्यु -- कुंड में झोंक । निर्बल का है कौन
सहाय ।
जिसकी लाठी उसका
न्याय ||
अब कैम न भूल गया हैं उसकी यह शैतानी । भाई. ॥२३॥ भाई कर मत यह नादानी,
जीवन मानी के समान हैं, मत उतार तू पानी | भाई | क्यों अपना गौरव खाता है । ममता का शिकार होता है ||
तुझ को नहीं विचार रहा है कहाँ न्याय अन्याय |
तु मानव है भूल गया पर मानवता भी हाय ॥ देवा चमड़े का सम्बन्ध |
नाते की माया में अन्ध ॥
कुल कुटुम्ब के झगड़े में पड़, भूला न्याय निशानी । माई. ||२४|| भाई कर मत यह नादानी,
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न्याय तुला लेकर बैठा फिर कैसी आनाकानी | भाई. | कोई नातेदार कहाता ।
न्यायी का क्या आता जाता ॥
अपना काम |
शुद्ध हृदय से करता रहता है वह दुनिया की पर्वाह न करता नाम हो कि बदनाम ||
कोई भी हो नातेदार
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कर तू न्याय न वन बेकार |
पक्षपात से न्याय -- तुला की कर मल खींचातानी | भाई. ॥ २५ ॥