________________
५४ ]
कृष्ण-गीता
आठवाँ अध्याय
. :-.".C-- - अर्जुन- (हरिगीतिका)
कर्तव्य मैं कैसे करूं जब बढ़ रहा जंजाल है । ज्यो ज्यों सिखात हो मुझे त्यों त्यो बिगड़ता हाल है।। हिंसा अहिंसा मे अगर व्यतिकर यहां हो जायगा । माधव, कहो संसार में तब सत्य क्या रहपायगा ॥१॥ हिंसा अहिंसा भी अगर सापेक्ष हैं तब धर्म क्या । निश्रित बता दो बात मुझको सन्यमय है कर्म क्या ॥ हिंसा अहिंसा हो, अहिंसा ही अगर हिंसा यहां । सापेक्ष जब होगी अहिंसा सत्य तब होगा कहां ॥२॥ है सत्य ही निर्णय-निकष कर्तव्य की या धर्म की । जो सत्यसे निश्चित न हो फिर क्या कथा उस कर्मकी ।। सापेक्षता का हो जहां चाञ्चल्य निर्णय क्या वहां । निर्णय नहीं तो सत्यकी अ भा दिखा सकती कहां ॥३॥ है सत्य निश्चित एकसा हाता न डावाँडोल है। होता न डावाँडाल जो जग म उसीका मोल है ॥ हिंसा रहे हिंसा अहिंसा भी अहिंसा सब कहीं । निरपेक्ष निश्चय हो जहां बस सत्य भी होता वहीं ॥४॥