________________
आठवाँ अध्याय
[५५
श्रीकृष्ण--
गीत १८ करके विचार तने सचका पता न पाया । होती जहां अहिंसा सच भी वहीं समाया ॥ कर....॥५॥ कल्याणरूप ही हैं सब धर्म कर्म जगके । कल्याण का विरोधी है सत्यकी न छाया । करके....॥६॥ कल्याण-कारणों मे सापेक्षता भरी जब ।। तब क्यों न धर्म भी हा सापेक्ष रूा गाया । करक.....||७|| सापेक्ष है अहिंसा सापेक्ष सत्य भी है । सापेक्ष सब जगत है निरपेक्ष भ्रम बताया।। करक....॥८॥ मत मान तथ्यको ही सर्वत्र सररूपी । होता असत्य भी वह सुग्वकर म जो कहाया । करके... ॥२॥ 'समझा अतथ्य को क्यों 'हरदम अमत्यरूपी । होता अतथ्य भी सच कल्याणकर बनाया । करके....॥१०॥ कल्याण की अपेक्षा निर्णय सभी करेंगे । निरपेक्ष व्यर्थ ही है वह है असत्य माया ॥ करक....॥११॥
दोहा जिस प्रकार सापेक्ष है परम अहिंसा धर्म । उस प्रकार हे सत्य भी समझ धर्म का मर्म ॥१२॥ तथ्य सत्य में भेद है सत्य करे कल्याण । तथ्य बताता वस्तु है हो कि न हो जन-त्राण ॥१३॥ अगर विश्वहित हो नहीं तो अपथ्य है तथ्य । विश्व-हितकर हो अगर तो अतथ्य भी पथ्य ॥१४॥