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आठवाँ अध्याय [५९ वंचक निंदक युगल यह है असत्य भंडार । पर-पीड़क झूठे वचन दोनों दुखद अपार ॥३४॥ पुण्योत्तेजक स्त्र पर का रक्षक और विनोद । हैं अतथ्यमय किन्तु ये रहे सत्यकी गोद ॥३५॥
वंचक अतथ्य जहाँ वंचना जगत की नित झूठा व्यवहार । विश्वामों का घात हो फैला मायाचार ॥३६॥ स्वार्थ करें तांडव जहाँ ठगकर पर की हानि । है अतथ्य वंचक वहां परम पाप की ग्वानि ॥३७॥
निंदक अतथ्य तिरस्कार का भाव हो रहे क्रोध अभिमान । है अतथ्य निंदक जहां गाली आदि प्रदान ॥३८॥
पुण्योत्तेजक अतथ्य नीति सिखावे जगत को ऐसे कथा-प्रसंग । तथ्यहीन भी हा मगर कहे सत्य के अंग ॥३९॥ इसी तरह भवृत्त या स्वर्ग-नरक की बात । तथ्यहीन हो पर नहीं करे सत्य का घात ॥४०॥ वहीं सत्यका घात है जहां नीति का घात । नीति और समभाव की वर्धक सच्ची बात ॥४१॥ सत्पथ में जो दृढ़ करे दूर करे दौर्गत्य । तथ्यहीन हो पर कहा पुण्योत्तेजक सत्य ॥४२॥